How I Taught My Grandmother to Read Summary In English
In ‘How I Taught My Grandmother To Read’, Sudha Murty describes the determined efforts of an illiterate old lady Krishtakka to make herself literate. She decided to read a novel on her own. The grandmother set the deadline and achieved the target next to impossible within the time set for it. She was able to read the novel Kashi Yatre in the Kannada language on her own at sixty-two. She was helped by her young granddaughter who acted as her only teacher. The grandmother proved that there is no age bar for learning.Triveni’s Popular Novel—Kashi Yatre
The narrator was a girl of about twelve. She used to stay in a village in north Karnataka with her grandparents. At that time Triveni was a very popular writer in the Kannada language. She was a wonderful writer. Her style was easy to read and quite convincing. Her stories dealt with the complex problems in the lives of ordinary people. One of her novels, Kashi Yatre was appearing as a serial in the Kannada magazine Karmaveera. It was the story of an old lady who desired to go to Kashi to worship Lord Vishweshwara. In the story, there was also a young orphan girl. She could not marry because she had no money for the wedding. In the end, the old lady gives away all her savings to the girl without going to Kashi. She considered the happiness of the orphan girl more important than even worshipping Lord Vishweshwara at Kashi.
Grandmother Krishtakka
The narrator’s grandmother never went to school. Hence, she couldn’t read or write. Every Wednesday, the magazine Karmaveera would come. The grandmother would ask her twelve year old grand-daughter to read the next episode of the story to her. She would listen to her with the greatest concentration. During that time she would forget all her work. Later, she could repeat the entire text by heart. The grandmother too never went to Kashi. She identified herself with the heroine of the novel. After listening to the next episode of Kashi Yatre she would join her friends at the temple courtyard. There, she would discuss the latest episode with her friends.
Grandmother in Tears
Once the narrator went for a wedding with her cousins to a neighbouring village. She went for a couple of days but overstayed their for a week. When she came back to her village, she saw her grandmother in tears. She was shocked. She had never seen the old lady cry even in the most difficult circumstances. The old lady narrated her story to her granddaughter. She had lost her mother when she was just a young girl. There was nobody to look after and guide her. Her father married again. In those days nobody cared to give education to girls. So she never went to school. She got married very young and had children. Later she had grandchildren.
Regret for Not Going to School
The grandmother felt so much happiness in cooking and feeding all of her children. At times, she used to regret not going to school. She had leamt a lesson. So she made sure that her children and grandchildren studied well. When the narrator was away, Karmaveera came as usual. She opened the magazine. She could not understand anything that was written there. For the first time she felt so much dependent and helpless.
Grandmother Takes a Decision
The grandmother decided to learn the Kannada alphabet from the next day onwards. She decided to work very hard. She kept the Saraswati Pooja day during Dassara as the deadline. That day she would be able to read a novel on her own. She wanted to be independent. The narrator saw the determination on her face yet she laughed at the decision of her grandmother. She made fun of the old lady. But her grandmother just smiled and said nothing.
A Wonderful Student
The next day onwards, the narrator started her tuition. The grandmother was a wonderful student. She did amazing homework. She would read, repeat, write and recite. The narrator was her only teacher. The grandmother was her first student.
Grandmother Reads Kashi Yatre on Her Own
The Dassara festival came as usual. The novel Kashi Yatre had been published by that time. The narrator secretly bought a copy of the novel. The grandmother called her granddaughter to the pooja place and made her sit down on a stool. She gave her a gift of a frock material. Then the grandmother did something unusual. She bent down and touched the feet of her granddaughter. The narrator was taken aback. The old lady gave an explanation. She told her that she was touching the feet of a teacher, not of her granddaughter. She taught her so well that she could read any novel confidently. A teacher should be respected, irrespective of the gender and age. Then she opened the novel and read the title Kashi Yatre by Triveni. The grandmother had passed with flying colours
How I Taught My Grandmother to Read Summary In Hindi
त्रिवेणी का प्रसिद्ध उपन्यास-काशी यात्रेकथाकार लगभग 12 साल की एक कन्या थी। वह अपने दादा-दादी के साथ उत्तरी कर्नाटक के गाँव में रहती थी। उस समय कन्नड़ भाषा में त्रिवेणी एक बहुत ही प्रसिद्ध लेखिका हुआ करती थी। वह एक अद्भुत लेखिका थी। उसकी शैली पढ़ने में आसान और काफी विश्वसनीय थी। उसकी कहानियाँ आम लोगों के जीवन की जटिल समस्याओं से निपटती थीं। उसका एक उपन्यास काशी यात्रे कन्नड़ पत्रिका कर्मवीर में एक धारावाहिक के रूप में निकल रहा था। यह एक वृद्धा महिला की कहानी थी जो भगवान विश्वेश्वर की पूजा के लिये काशी जाना चाहती थी। कहानी में एक युवा, अनाथ लड़की भी थी। वह शादी नहीं कर सकती थी क्योंकि उसके पास शादी के लिए पैसे नहीं थे। अन्त में, बिना काशी गये वृद्धा अपने सारे बचाये हुए पैसे उस लड़की को दे देती है। उसने भगवान विश्वेश्वर की पूजा करने की अपेक्षा उस अनाथ लड़की की खुशी को अधिक महत्त्वपूर्ण समझा।
दादी क्रिशटक्का
कथाकार की दादी कभी स्कूल नहीं गयी। इसीलिये, वह लिखना-पढ़ना नहीं जानती थी। हर बुधवार को पत्रिका कर्मवीर आती थी। दादी अपनी 12 साल की पोती को उस कहानी का अगला धारावाहिक उसे पढ़कर सुनाने को कहती थी। वह बहुत ही ध्यान लगा कर उसे सुनती थी। उस समय के दौरान वह अपना सारा काम भूल जाती थी। बाद में वह सारे मूल-पाठ को कण्ठस्थ दोहरा देती थी। दादी भी कभी काशी नहीं गयी। वह स्वयं को उपन्यास की नायिका के साथ जोड़ लेती थी। काशी यात्रे का अगला धारावाहिक सुनकर वह अपनी सहेलियों से मंदिर के प्रांगण में मिलती। वहां वह सब से ताजा धारावाहिक पर अपनी सहेलियों के साथ बहस करती थी।
अवसादग्रस्त दादी
एक बार कथाकार अपने चचेरे भाई-बहनों के साथ पास के गाँव में शादी में गयी। वह एकाध दिन के लिये गयी थी लेकिन एक सप्ताह तक वहां ठहर गयी। जब वह अपने गाँव वापस आयी, उसने अपनी दादी को दु:खी पाया। वह हैरान हो गयी। उसने कठिन से कठिन हालात में भी अपनी दादी को कभी रोते-चीखते नहीं देखा था। दादी ने अपनी पोती को अपनी कहानी सुनायी। जब वह बहुत ही कम आयु की लड़की थी कि उसकी माँ चल बसी। उसकी देखभाल और मार्गदर्शन के लिये कोई भी नहीं था। उसके पिता ने कर से शादी कर ली। उन दिनों लड़कियों को शिक्षा देने की कोई भी परवाह नहीं करता था। इसलिये, वह कभी भी पाठशाला नहीं गयी। उसकी बहुत कम आयु में शादी हो गयी और बच्चे हो गये। बाद में उसके पोते-पोतियाँ भी हो गये।
स्कूल न जाने का पश्चाताप
दादी अपने सभी बच्चों के लिए खाना पकाने और उन्हें खिलाने में बहुत प्रसन्नता अनुभव करती थी। कभी-कभी वह स्कूल न जाने पर पश्चाताप करती थी। उसने सबक सीख लिया था। इसीलिये, उसने यह सुनिश्चित किया कि उसके बच्चे और पोते-पोतियाँ अच्छी तरह पढ़े। जब कथाकार बाहर गयी हुई थी तो कर्मवीर आम दिनों की तरह ही आया। उसने पत्रिका खोली। वहाँ जो कुछ लिखा था वह बिल्कुल ही समझ नहीं पायी। उसने स्वयं को पहली बार इतना अधिक आश्रित और असहाय अनुभव किया।
दादी एक निर्णय लेती हैं।
दादी ने अगले दिन से ही कन्नड़, की वर्णमाला सीखने का निर्णय लिया। उसने बहुत कठिन परिश्रम करने का फैसला किया। उसने दशहरा के दौरान सरस्वती पूजा के दिन को अंतिम तिथि के रूप में रखा। उस दिन वह अपने आप ही एक उपन्यास को पढ़ पायेगी। वह स्वतंत्र होना चाहती थी। कथाकार को उसके चेहरे पर दृढ़ता का भाव दिखाई दिया। कर भी वह अपनी दादी के निर्णय पर हँसी। उसने दादी का मजाक उड़ाया। लेकिन उसकी दादी सिर्फ मुस्करा दी और उसने कुछ भी नहीं कहा।
एक अद्भुत विद्यार्थी
अगले दिन से कथाकार ने अपना शिक्षण प्रारम्भ कर दिया। दादी एक अद्भुत विद्यार्थी थी। वह गजब का गृहकार्य करती थी। वह पढ़ती, दोहराती, लिखती और कण्ठस्थ सुनाती। कथाकार ही एक मात्र उसकी शिक्षिका थी। दादी उसकी पहली शिष्या थी।
दादी काशी यात्रे को स्वयं पढ़ती हैं।
दशहरे का त्योहार अपने समय पर आ गया। उपन्यास काशी यात्रे उस समय तक प्रकाशित हो चुका था। कथाकार ने चुपचाप उपन्यास की एक प्रति खरीद ली थी। दादी ने अपनी पोती को पूजा के स्थान पर बुलाया। उसने उसे एक स्टूल पर बिठाया। उसने उसे फ्रॉक का सामान उपहार के तौर पर भेंट किया। फिर दादी ने एक असाधारण काम किया। वह झुकी और उसने अपनी पोती के पैरों को छुआ। कथाकार हतप्रभ रह गयी। दादी ने स्पष्टीकरण दिया। उसने उसे बताया कि वह एक पोती की नहीं अपितु एक शिक्षक के चरणों को छु रही थी। उसने इतने बढ़िया ढंग से शिक्षण दिया कि अब वह किसी भी उपन्यास को विश्वास के साथ पढ़ सकती है। चाहे उसकी आयु या लिंग कुछ भी हो, एक शिक्षक का सम्मान होना चाहिए। फिर उसने उपन्यास खोला, और उसके शीर्षक काशी यात्रे को पढ़ा। दादी विशिष्टता के साथ पास हो गयी थी।
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