The Bear Story Summary In English
Once there lived a lady on the border of a big forest. She found a bear cub in the forest. It was starving. It was quite helpless. The lady had to bring it up on the bottle. The cook helped her.
After many years it grew up to a big and strong bear. However, he was a most amiable bear. He harmed neither men nor beasts. There were three mountain ponies in the stable. Even these ponies did not feel frightened when he walked into the stable. He also looked amicably at the cattle. The children used to ride on his back. They had also been found asleep in his kennel between his two paws. The three Lapland dogs loved to play with him. They pulled his ears and teased him in every way. He did not mind it at all.
The bear ate the same food as the dogs. He ate bread, porridge, potatoes, cabbages and turnips. He had a good appetite. He used to see with wistful eyes at the apples in the orchard. He was not allowed to climb the tree and eat them. He had also been taught not to touch the beehive. He was once put on the chain for two days when he had touched the beehives. Otherwise he was chained only at night. Like a dog, a bear also does not like to be chained.
The lady visited her sister every Sunday. This sister lived on the other side of the mountain lake. It was not safe to go with the bear through the forest. So on the Sundays the bear was on chain the whole afternoon.
One Sunday while walking through the dense forest, she found the bear following her. The lady was very angry. There was no time to take him back home. She did not even want him to come with her. She told him in her hardest tone to go back. She threatened him with her parasol. The bear did not seem to want to obey her. Then the lady saw that the bear had even lost his new collar. She hit the bear with her parasol so hard that it broke into two. The bear stopped and opened his mouth several times as if wanting to say something. Then he turned round and went back. However, he stopped now and then to look back at the lady. At last she lost sight of him.
The lady came back home in the evening. She found the bear looking very sorry for himself. It was so because he had been sitting there the whole day. Sitting in the same position he had been waiting for the lady. The lady was still very angry. She began to scold the bear. She said that he would be chained for two more days as punishment.
The old cook heard the lady and rushed out from the kitchen. She loved the bear as her own son. She asked the lady to bless him instead of scolding him. The bear, she said, had been sitting there all day as meck as an angel.
It was then that the lady realised she had met another bear in the forest.
It was then that the lady realised she had met another bear in the forest.
The Bear Story Summary In Hindi
एक बार एक महिला एक बड़े जंगल के किनारे रहती थी। उसे जंगल में रीछ का एक बच्चा मिल गया। वह भूख से मर रहा था। वह बिलकुल लाचार था। उस महिला को उसे बोतल से भोजन देकर पालना पड़ा। रसोइन ने उसकी मदद की।
कई वर्षों बाद यह बड़ा और शक्तिशाली रीछ बन गया। फिर भी यह बड़ा मैत्रीपूर्ण रीछ था। वह न तो मनुष्यों को और न ही पशुओं को कोई हानि पहुँचाता था। अस्तबल में तीन पहाड़ी घोड़े थे। ये घोड़े भी उसके अस्तबल में आने पर डरते नहीं थे। चौपायों की तरफ भी वह मैत्री भाव से देखता था। बच्चे उसकी पीठ पर सवारी करते थे। उसके बसेरे में बच्चों को उसके दो पंजों के बीच में सोता पाया गया था। तीन लैपलैंड कुत्ते उसके साथ खेला करते थे। वे उसके कान खींचते और तरह-तरह से उसे छेड़ते थे। पर उसे वह सब बिलकुल बुरा नहीं लगता था।
रीछ कुत्तों वाला खाना ही खाता था। वह रोटी, दलिया, आलू, बन्द गोभी और शलगम खाता था। उसकी भूख अच्छी थी। बगीचे के सेबों को वह ललचाई आँखों से देखता रहता था। उसे पेड़ पर चढ़कर उन्हें खाने की इजाजत नहीं थी। उसे मधुमक्खियों के छत्तों को न छूना भी सिखाया गया था। एक बार इस छत्ते को छूने पर उसे दो दिन जंजीर से बांधकर रखा गया था। वरना उसे सिर्फ रात में ही बाँधा जाता था। कुत्ते की तरह रीछ भी बाँधा जाना पसंद नहीं करते हैं।
महिला हर रविवार अपनी बहन से मिलने जाती थी। यह बहन पहाड़ी झील के दूसरे किनारे पर रहती थी। रीछ के साथ जंगल से गुजरना सुरक्षित नहीं था। इसलिए रविवार को तीसरे पहर रीछ चेन से बँधा रहता था।
एक रविवार को जब वह घने जंगल से गुजर रही थी तो उसने रीछ को अपने पीछे आता पाया। महिला बड़ी क्रुद्ध हुई। इतना समय न था कि उसे वापस घर लेकर जाये। वह यह भी नहीं चाहती थी कि वह उसके साथ जाये। उसने अपने कठोरतम स्वर में उससे वापस जाने को कहा। उसने अपनी छतरी से उसे धमकाया। लगा कि जैसे रीछ उसकी आज्ञा मानना नहीं चाहता था। तब उस महिला ने देखा कि रीछ के गले में उसका नया पट्टा भी नहीं था। उसने अपनी छतरी रीछ को इतनी जोर से मारी कि वह टूटकर दो टुकड़े हो गई। रीछ रुका और उसने अपना मुँह कई बार खोला मानो कुछ कहना चाहता हो। फिर वह वापस मुड़कर चला गया। फिर भी वह रुक-रुक कर महिला की तरफ देख लेता था। अंतत: वह महिला की आँख से ओझल हो गया।
महिला शाम को घर वापस आयी। उसने रीछ को अपने ऊपर तरस खाता सा बैठे देखा। ऐसा इसलिए था कि वह सारे दिन वहाँ बैठा रहा था। उसी स्थिति में बैठा हुआ वह महिला की प्रतीक्षा कर रहा था। वह महिला अभी भी बड़ी क्रुद्ध थी। उसने रीछ को डाँटना प्रारंभ कर दिया। उसने कहा कि दंड के रूप में उसे दो दिन और बाँधकर रखा जाएगा।
बूढी रसोइन ने महिला की बात सुनी और वह तेजी से रसोई से बाहर निकलकर आई। वह रीछ से अपने बेटे जैसा प्यार करती थी। उसने महिला से कहा कि रीछ को डाँटने की बजाय उसे उसको आशीर्वाद देना चाहिए। उसने बताया कि सारा दिन रीछ एक देवदूत की भांति शांति से वहीं पर बैठा रहा था।
तब जाकर महिला को अहसास हुआ कि जंगल में वह किसी अन्य रीछ से मिली थी।
तब जाकर महिला को अहसास हुआ कि जंगल में वह किसी अन्य रीछ से मिली थी।
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