Sunday, July 19, 2020

NCERT class 9 English Beehive Chapter 9 summary The Snake and The Mirror (notes) explained (translation) in hindi



The Snake and The Mirror Summary In English

Story of a doctor and a snake
This is the story about a snake. It had entered (into) the narrator’s room. The narrator is a doctor. He had just started his practice those days.
Doctor sees his face in the mirror
It was a hot summer night. The doctor had his meals at the restaurant and returned home. The rented house was not electrified. So he lighted the kerosene lamp. Then he took off his coat and, shirt and opened the two windows. After some time, he settled on the chair and took out a book. There was a large mirror on the table. Those days the doctor bothered much about his looks. He, therefore picked up the comb and parted his hair. He looked at his reflection in the mirror. Then he practised an attractive smile. The room had many rats. They constantly made a noise.
Fall of a snake on him
The doctor got up. He lit a beedi. He paced up and down the room. The thought of his marriage came to him. He thought of marrying a wealthy doctor. His wife had to be fat. So she won’t catch him if he ran away. He came back and sat at the table. The sounds of rats had stopped. Suddenly, there was a dull thud. As he turned his head a fat snake landed over his shoulder. Before the doctor could think of anything, the snake had coiled around his left arm above the elbow. His hood was spread out. His head was hardly three or four inches from his face.
Doctor’s thoughts and escape from the snake
The doctor sat there as if he were a piece of stone. He thought of only one help—the help from God. It seemed God appreciated that. The snake turned its head and looked into the mirror. The snake, then, unwound itself from the doctor’s arm. He fell into his lap. From there it crept on the table. Then it moved towards the mirror. Apparently, it wanted to see its reflection more closely. This was the doctor’s opportunity. Very slowly, he got up from the chair. He ran out of the house in no moments.
Doctor shifts elsewhere
He reached a friend’s house and spent his time there. He came back to his house only next morning. It was about eight-thirty. He had with him his friend and one or two others. They had to move his things from there. However, they had little to carry. Some thief had taken awaymost of his things. There was no sign of the snake also.

The Snake and The Mirror Summary In Hindi

डॉक्टर और साँप की कहानी
यह कहानी एक सर्प के बारे में है। वह वक्ता के कमरे में घुस आया था। वक्ता एक डॉक्टर है। उसने उन्हीं दिनों अपने पेशे को प्रारम्भ किया था।
डॉक्टर का शीशे में अपनी शक्ल देखना
ग्रीष्म ऋतु की यह एक गरम रात थी। रेस्तराँ में भोजन करने के बाद डॉक्टर अपने घर लौटा था। किराये के घर में बिजली का कनेक्शन नहीं था। इसलिए उसने मिट्टी के तेल की लालटेन जलाई। फिर अपना कोट कमीज उतार कर उसने दोनों खिड़कियाँ खोल दीं। कुछ देर पश्चात् वह कुर्सी पर बैठ गया और उसने एक किताब निकाल ली। मेज के ऊपर एक बड़ा शीशा था। उन दिनों डॉक्टर को अपनी शकल का बड़ा ख्याल रहता था। इसलिए उसने कंघा उठाया और अपने बालों को संवारा। उसने शीशे में अपनी छवि निहारी। फिर उसने चेहरे पर एक आकर्षक मुस्कराहट लाने का प्रयत्न किया। कमरे के अन्दर बहुत से चूहे थे। वे लगातार शोर कर रहे थे।
उस पर साँप का गिरना
डॉक्टर उठ खड़ा हुआ। उसने बीड़ी जलाई। वह कमरे में इधर-उधर चक्कर लगाने लगा। उसे अपनी शादी का ख्याल आया। उसने एक धनवान डॉक्टर से विवाह के बारे में सोचा। उसकी पत्नी मोटी होनी चाहिए। इसलिए यदि वह दौड़ा तो वह उसे पकड़ न सकेगी। वह वापस आकर मेज पर बैठ गया। चूहों का शोर रुके गया था। अचानक एक ‘धम’ की भारी आवाज आयी। उसके सिर घुमाने तक एक मोटा साँप उसके कंधे पर आ चुका था। इससे पहले डॉक्टर कुछ सोच सका, साँप डॉक्टर के बायें बाजू पर कोहनी के ऊपर के भाग पर लिपट गया। उसका फन फैला हुआ था। उसका सिर उसके चेहरे से मुश्किल से तीन या चार इंच दूर
होगा।
डॉक्टर के विचार और साँप से बचाव
डॉक्टर वहाँ ऐसे बैठा रहा जैसे कोई पत्थर का टुकड़ा हो। उसके ख्याल में एक ही सहारा आया- भगवान का सहारा। लगता था भगवान ने भी इस भावना की कद्र की हो। साँप ने अपना सिर घुमाया और शीशे में देखा। फिर साँप ने डॉक्टर के बाजू की पकड़ ढीली की। वह उसकी गोदी में गिर गया। वहाँ से यह रेंग कर मेज पर आ गया। फिर वह शीशे की तरफ बढ़ चला। ऐसा लगता था मानो वह अपनी छवि को अधिक निकटता से देखना चाहता था। डॉक्टर के लिए यही मौका था। बड़े धीरे से वह कुर्सी से उठा। अति शीघ्र वह घर के बाहर भाग गया।
डॉक्टर का कहीं और चले जाना
वह एक मित्र के घर पहुँचा और अपना समय वहाँ बिताया। वह अगले दिन प्रातः अपने घर वापस आया। साढ़े आठ बजे थे। उसके साथ अपने मित्र और एक या दो अन्य व्यक्ति थे। उन्होंने वहाँ से उसका सामान उठाना था। परन्तु उनके उठाने के लिए वहाँ कुछ नहीं बचा था। कोई चोर उसकी अधिकतर चीजें उठाकर ले जा चुका था। साँप का भी कहीं पता न था।
 

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